प्रस्ताव एक
कर्नाटक में लापता मतदाता : भाजपा की राज्य सरकार की नापाक करतूत
बेंगलुरु में लगभग 6 लाख मतदाताओं के नाम गायब होना यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है की सुनियोजित साजिश के तहत लोकतंत्र का गला घोटा जा रहा है। यह सीधे तौर पर देश की चुनावी राजनीति में भाग लेकर अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग कर रहे मतदाताओं का अवमूल्यन करना है। ना केवल कर्नाटक की राजधानी में, बल्कि पूरे राज्य में बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से गायब होने का शक है और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इसमें सर्वेक्षण की आड में एजेंटों की मिली भगत की संभावना है। हमें डर है देश के अन्य राज्यों में भी ऐसा हो सकता है।
यह सत्ताधारी दलों द्वारा चुनाव जीतने के लिए जनता के वोटों और भरोसे का सीधे तौर पर हेर फेर है। देश की चुनावी लोकतांत्रिक व्यवस्था को उखाड़कर उनके अंदर अंधराष्ट्रवाद और घटिया प्लान को लागू करने का खतरनाक एजेंडा है। एसडीपीआई की राष्ट्रीय कार्यसमिति कड़े शब्दों में इस अवैध कृत्य की निंदा करती है और चुनाव आयोग से इस तरह के जघन्य अपराध के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का आग्रह करती है।
रविवार, 11 दिसंबर 2022
प्रस्ताव दो
केंद्र और भाजपा शासित राज्य काले कानूनों का दुरूपयोग करके एजेंसियों का कर रहे है गलत इस्तेमाल
विभिन्न केंद्रीय एजेंसियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि यह सरकारी संस्थाएं खुफिया जानकारी उपलब्ध करा कर बेहतर शासन में मदद करती हैं। इन संस्थाओं को सरकार और समाज के प्रहरी के रूप में स्थापित किया जाता है ताकि भ्रष्ट और गलत कार्य प्रणाली ना पनप सके और नागरिक शांति से अपना जीवन यापन कर देश की प्रगति में मदद कर सके। हालांकि यह लंबे समय से देखा गया है कि एजेंसियों को गलत को सही साबित कर निर्दोष नागरिकों को परेशान करने और विरोध के स्वर को दबाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इतना ही नहीं सैकड़ों लोगों को देशद्रोह कानून और यू.ए.पी.ए., रा.सु.का., पी.एम.एल.ए. जैसे काले कानूनों में झूठा फसा दिया जाता है। कई वर्षों तक जेल में बंद रहने के बाद ऐसे कई लोग बेगुनाह पाए गए हैं जबकि यातना पूर्ण पुलिस और न्यायिक हिरासत में कई कीमती जान चली गई हैं। कई लोगों को या तो संदेह के आधार पर या उन्हें झूठे मामलों में बिना अपराधों के कानूनी रूप से स्थापित हुए गिरफ्तार कर लिया जाता है। ऐसी घटनाओं से अल्पसंख्यकों और वंचित वर्गों के मन मस्तिष्क में भारत की न्यायिक प्रक्रिया और कामकाज के प्रति निराशा की भावना उत्पन्न हो गई है।
एसडीपीआई की राष्ट्रीय कार्यसमिति इसे देश के कानून और शासकीय प्रणाली में जनता के घटते आत्मविश्वास के रूप में देखती है जो कि लोकतंत्र के लिए एक चिंता का प्रश्न है। राष्ट्रीय कार्यसमिति इसलिए इस प्रस्ताव को पारित करके यह मांग करती है कि ऐसे कानूनों और संस्थाओं के दुरुपयोग पर रोक लगे और कानून की सर्वोच्चता पर देश के नागरिकों में विश्वास को दोबारा बहाल करने का आह्वान करती है।
रविवार, 11 दिसंबर 2022
प्रस्ताव तीन
तेलंगाना में बीजेपी द्वारा विधायकों की खरीद–फरोख्त
मनी लॉन्ड्रिंग और संविधान विरोधी अपराध का मामला
विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित प्रतिनिधियों की खरीद-फरोख्त, भाजपा शासन की सबसे बड़ी चौंकाने वाली घटना है। हाल ही में तेलंगाना के 3 विधायकों को भाजपा के लोगों द्वारा लगभग 100 करोड़ रुपये का लालच देने की घटना इस बात का उदाहरण है कि कैसे इस तरह के संविधान विरोधी अपराध पूरी तरह से बेरोकटोक हो रहे हैं। भारतीय लोकतंत्र और इसकी संघीय संरचना कभी भी निर्वाचित विधायको की इस तरह की वीभत्स खरीद-फरोख्त में शामिल नहीं हुई. यह एक ऐसी प्रथा है जिसने हम सभी भारतीयों को शर्मसार किया है। निष्पक्ष चुनावी जीत के माध्यम की बजाय खरीद-फरोख्त से भाजपा ने कई राज्य सरकारों को गिरा दिया है, जो मतदाताओं का पूर्ण अपमान है और राजनीतिक नैतिकता, सामाजिक नैतिकता और लोकतंत्र की भी अवहेलना है। इस संविधान-विरोधी अपराध में पैसे का भारी लेन-देन शामिल है। हैरानी की बात यह है कि न तो ईडी और न ही एनआईए ने इनके खिलाफ कोई पहल की है।
एसडीपीआई की राष्ट्रीय कार्यसमिति स्पष्ट रूप से भाजपा के इस अलोकतांत्रिक, अनैतिक और संविधान-विरोधी व्यवहार की निंदा करती है और भारत के चुनाव आयुक्त, ईडी और एनआईए से मांग करती है कि वे इस तरह की प्रथाओं के खिलाफ गंभीर कार्रवाई करें और इस तरह के जघन्य कृत्यों में शामिल व्यक्तियों को सक्रिय राजनीति से बाहर करें।
रविवार, 11 दिसंबर 2022
प्रस्ताव चार
पूरी न्यायपालिका को प्रभावित कर रहा ‘जमानत संकट‘
भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में टिप्पणी की है कि जमानत नियम है और जेल अपवाद। इसके विपरीत हमारे देश में ‘जेल इज नॉर्म एंड बेल एक्सेप्शन’ की प्रवृत्ति बढ़ती रही है। ‘जमानत का संकट’ पूरी न्यायपालिका को प्रभावित कर रहा है और संदेह के आधार पर गिरफ्तार किए गए कई नागरिक जेलों मैं बंद है और उनकी जमानत याचिका बार-बार खारिज की जा रही है। भारी आर्थिक लागत के अलावा उनके परिवार के सदस्यों का अनावश्यक उत्पीड़न हो रहा है। गिरफ्तार किए गए लोगों और उनके परिवार के सदस्यों को भारी मानसिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक आघात से गुजरना पड़ता है; जिसे कई अखबारों के संपादकीय ने “प्रक्रिया बन गई सजा” के रूप में सटीक वर्णित किया है। लाखों मामले लंबित पड़े हैं जिनमें बिना अपराध साबित हुए ही न्याय में अनावश्यक देरी की जा रही है।
सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया की राष्ट्रीय कार्य समिति ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय और भारत के उच्च न्यायालयों से न्यायिक प्रक्रिया में तेजी लाने की अपील की और सभी अदालतों और न्यायाधीशों को जमानत आसान बनाने और यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि निर्दोष लोगों उनके अपराध सबूत द्वारा साबित किए बिना लंबे समय तक जेलों में नहीं रखा जाए।
रविवार, 11 दिसंबर 2022
प्रस्ताव पांच
ईडब्ल्यूएस आरक्षण शोषित समाज के अवसरों को लूटता है
आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों – ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के पांच-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा हाल ही में आए विभाजित फैसले पर व्यापक रूप से बहस हो रही है। अधिकांश विशेषज्ञों और विश्लेषकों ने देश की आरक्षण नीति के खिलाफ फैसले की वैधता पर सवाल उठाया है, क्योंकि इसमें एससी, एसटी, एसईबीसी और ओबीसी शामिल नहीं हैं। यह संक्षेप में सामाजिक रूप से वंचित वर्गों को बाहर कर देता है और उच्च जाति के लोगों को हाशिए के वर्गों को लाभार्थियों की सूची से दूर धकेल कर आगे लाभ उठाने की अनुमति देता है। दरअसल, संविधान में निहित आरक्षण प्रणाली का विचार राष्ट्र निर्माण में दलित और उत्पीड़ित समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करना और उन्हें उत्पीड़न से मुक्ति दिलाना है। संविधान में जिस आरक्षण पर बल दिया गया है वह केवल सामाजिक अभाव पर आधारित है न कि आर्थिक रूप से पिछड़ेपन पर। असल में, वर्तमान सरकार द्वारा ईडब्ल्यूएस आरक्षण की अनुमति, भारतीय संविधान के सिद्धांतों और सामाजिक न्याय की अवधारणा के बिल्कुल खिलाफ है।
सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया की नेशनल वर्किंग कमेटी ने फैसले की समीक्षा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अपील करती हैं।
रविवार, 11 दिसंबर 2022
प्रस्ताव छः
समान नागरिक संहिता देश की हर संस्कृति और परंपराओं के लिए विनाशकारी होगी
कई राज्यों में चुनाव नजदीक आने के साथ, कई भाजपा नेताओं ने समान नागरिक संहिता के बारे में बोलना शुरू कर दिया है, एक ऐसा कदम जिसमें छिपे हुए मकसद की बू आ रही है। जबकि देश में नफरत और सांप्रदायिकता के खिलाफ एक राजनैतिक मूड तैयार हो रहा है, भगवाकृत दक्षिणपंथी भाजपा की नफरत आधारित, फूट डालो और राज करो की नीति के अलावा, अब भाजपा के नेता और ज्यादा सांप्रदायिक कार्ड खेलना चाह रहे हैं। यूनिफॉर्म सिविल कोड निश्चित रूप से उनमें से एक है। हालांकि, लोग विभाजनकारी एजेंडे को समझ रहे हैं।
यह स्पष्ट है कि यूसीसी को लागू करने का निर्णय धार्मिक अल्पसंख्यकों और समाज के कमजोर वर्गों की स्थिति को कमजोर करेगा जो पहले से ही देश में बढ़ी हुई ब्राह्मणवादी व्यवस्था से वंचित और बहिष्कृत हैं। भारत के एक पूर्व प्रधान मंत्री ने हाल ही में स्पष्ट रूप से कहा कि संविधान में समान नागरिक संहिता लागू करने का कोई प्रावधान नहीं है। लोकतंत्र में, नागरिकों को संविधान ने अपनी आस्था को मानने और उसका पालन करने का अधिकार प्रदान किया है। यूसीसी को सभी धर्मों और परंपराओं के लोगों की सहमति के बिना लागू नहीं किया जा सकता है।
इसलिए सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया फासीवादी ताकतों के ऐसे किसी भी बयान की निंदा करती है। एसडीपीआई भारत के चुनाव आयुक्त से अपील करती है कि वे सभी राजनीतिक दलों को चुनाव के समय मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए इस तरह के अत्यधिक राजनीतिक कार्यक्रमों को प्रतिबंधित करने के आदेश दें। एसडीपीआई की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति इस तरह के फैसले और राजनीतिक पैंतरेबाज़ी का विरोध करती है और इसे धार्मिक कार्ड खेलकर जनता की राय को बांटने और प्रभावित करने का सस्ता और नीच साधन घोषित करती है और बहुसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति को अनैतिक और अलोकतांत्रिक करार देती है।
No Comments