जन हितेषी राजनीति के 11 वर्ष पूरेजन हितैषी भयमुक्त राजनीति के उद्देश्य की पूर्ति के लिए बनी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया अपने गठन के 11 वर्ष पूरे करने जा रही है. भारत में विकराल रूप ले चुकी सांप्रदायिक राजनीति, कमजोर विपक्ष और धर्मनिरपेक्ष ताकतों की अकर्मण्यता के मद्देनजर इस पार्टी का गठन किया गया था. पार्टी के नारे “भूख से आजादी खौफ से आजादी” ने भारत के सभी ज्वलंत मुद्दों को प्राथमिकता के आधार पर समावेशित कर लिया है.जब लोकतांत्रिक मूल्यों को दरकिनार किया जा रहा है ऐसे में पार्टी द्वारा प्रतिपादित सामाजिक लोकतंत्र की विचारधारा वर्तमान परिदृश्य में और भी प्रसांगिक हो गई है। संवैधानिक संस्थाएं एक-एक करके सांप्रदायिक फासीवादी ताकतों के सामने घुटने टेकती जा रही हैं। ये ताकतें न्यायालयों को भी अपने कब्जे में करने के लिए निरंतर प्रयासरत है जिनकी ओर जनता उम्मीद भरी निगाहों से देखती थी। दिल्ली और उत्तर प्रदेश के मुस्लिम विरोधी दंगों में यह साफ तौर पर देखा गया कि पूर्व नियोजित दंगों को सरकार ने प्रायोजित किया और उन्हें आर एस एस और संघ परिवार ने अंजाम दिया। सरकारी मशीनरी ने ना केवल दंगाइयों को हर तरह की मदद पहुंचाई बल्कि निर्दोष पीड़ितों पर मुकदमे दर्ज कर उन्हें जेल में बन्द कर रही है।देश आज आजादी के बाद के सबसे बुरे आर्थिक संकट को झेल रहा है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश का कृषि क्षेत्र पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है। कृषि क्षेत्र को बचाने या फिर उत्पादन क्षेत्र को पुनर्जीवित करने की सरकार के पास कोई योजना नहीं है। पानी और खाने के अभाव में सड़क किनारे प्रवासी मजदूरों की होती मृत्यु एक आम दृश्य बन चुका है। उनके श्रमिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है।वहीं दूसरी तरफ सरकार निजी उद्योगपतियों को अरबों रुपए की छूट दे रही है। समूचा सार्वजनिक क्षेत्र आज बिकाऊ है। ना केवल जमीन बल्कि अंतरिक्ष भी बेचा जा रहा है। सार्वजनिक उपक्रमों की उत्पादक क्षमता का लाभ लेने की बजाय सरकार एक प्रॉपर्टी डीलर की तरह सरकारी उपक्रमों को बेचने पर आमादा है। भारत किसानों की आत्महत्या, बेरोजगारी, मुद्रास्फीति और गरीबी के नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है।भारत अपने पड़ोसी देशों से बड़े टकराव की तरफ बढ़ रहा है। चीन और नेपाल हमारी जमीन पर दावेदारी पेश कर रहे हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी की सत्ता के नशे में आत्ममुग्ध शासक जानबूझकर हमारी सेना को मौत के मुंह में धकेल रहा है। संजीदा और मैत्रीय विदेश नीति की जगह सरकार भावनात्मक राष्ट्रवाद को बढ़ावा दे रही है।जहां एक ओर दुनिया भर की सरकारें अपने स्तर पर कोरोनावायरस महामारी से लड़ने के व्यापक इंतजाम कर रहीं हैं वहीं भारत सरकार पूरा ध्यान उन लोगों की धरपकड़ मे लगा रही है जो उसके सांप्रदायिक एजेंडे के खिलाफ खड़े हो रहे हैं। कोरोनावायरस से देश की आबादी को बचाने के लिए भारत सरकार अब तक कोई भी कारगर हस्तक्षेप नहीं कर पाई है जबकि सरकार के हास्यास्पद बयान आए दिन सुनने को मिल जाते हैं। आपदा की इस घड़ी में, विपक्ष इतना कमजोर है कि ना तो वह सरकार से कुछ सवाल पूछ सकता है और ना ही एक विकल्प के तौर पर नजर आता है। अधिकतर विपक्ष या तो सांप्रदायिक फासीवादी ताकतों के हाथ की कठपुतली बन चुका है या फिर उनके लालच और प्रलोभन के बदले अपना जमीर गिरवी रख चुका है। सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया ऐसी नीतियों पर विश्वास रखती है जो देश को तोड़ने वाली फासीवादी हिंदुत्व ताकतों के साथ ना समझौता करती है ना ही उनके सामने झुकती है। पिछले 11 वर्ष इसका उदाहरण है। अपने साथियों और समर्थकों से मैं यह बात साझा करना चाहूंगा कि हमारी राजनीतिक जिम्मेदारी कई गुना बढ़ गई है।पिछले 11 सालों में हमने ना केवल चुनावी राजनीति में सक्रियता दिखाई है बल्कि खौफ और भूख से हाशिए पर पड़े लोगों को आजादी दिलवाने के लिए लगातार संघर्षरत रहे हैं। एसडीपीआई ने संकट में फंसे लोगों को बचाकर उनके लिए हर संभव मदद देकर राजनैतिक रूढ़ियों को तोड़ने का काम किया है। यही कारण है जो फासीवाद के खिलाफ इस जंग में डट कर मुकाबला कर रही एसडीपीआई को सबसे अलग बनाता है।एसडीपीआई की 11 वीं वर्षगांठ पर मैं आप सब को दिली मुबारकबाद देता हूं और यह आह्वान करता हूं कि नव भारत निर्माण की प्रक्रिया में आप कंधे से कंधा मिलाकर पार्टी के संघर्षों के भागीदार बनेंगे।शुक्रिया।एमके फ़ैज़ीराष्ट्रीय अध्यक्षएसडीपीआई
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