एसडीपीआई, पेगासस जासूसी मामले में सख्त जांच की मांग करती है
सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) ने सुप्रीम कोर्ट में पेगासस स्पाइवेयर मामले की सुनवाई के दौरान हुई टिप्पणियों पर गहरी चिंता जताई है। पार्टी का कहना है कि कोर्ट की टिप्पणियां भारत में लोकतांत्रिक स्वतंत्रता को खतरे में डालने वाले इस गंभीर मामले की जड़ तक नहीं पहुंच पा रही हैं।
हालांकि जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह ने नागरिक समाज पर स्पाइवेयर के इस्तेमाल को चिंता का विषय बताया, लेकिन उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सरकार के पास इस तकनीक के होने को स्वीकार कर लिया, और जस्टिस रवींद्रन कमेटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक न करने का फैसला किया। एसडीपीआई का मानना है कि यह फैसला पारदर्शिता की भावना के खिलाफ है और कई सवाल खड़े करता है।
2021 की पेगासस प्रोजेक्ट रिपोर्ट और 2023 में एमनेस्टी इंटरनेशनल की जांच में साफ हुआ कि इस स्पाइवेयर से पत्रकारों और उन राजनेताओं को निशाना बनाया गया, जो बीजेपी और सरकार की नीतियों की आलोचना करते हैं। ये लोग देशविरोधी नहीं, बल्कि लोकतंत्र की जरूरी आवाजें हैं।
एसडीपीआई सुप्रीम कोर्ट से अपील करती है कि वह इस मामले की सुनवाई को और गहराई से ले और दोषियों की जवाबदेही तय करे, ताकि संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार सुरक्षित रह सकें।
सरकार की ओर से पेगासस के इस्तेमाल पर अब तक कोई साफ जवाब नहीं आया है, और उसने रवींद्रन कमेटी के साथ भी पूरा सहयोग नहीं किया। यह कमेटी 2022 में 29 में से 5 मोबाइल फोनों में मालवेयर पाए जाने की पुष्टि कर चुकी है। इस बात से यह डर और गहरा होता है कि सरकार निगरानी तंत्र का इस्तेमाल अपने आलोचकों को चुप कराने के लिए कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट की यह सलाह कि प्रभावित लोग खुद कानूनी रास्ता अपनाएं, व्यावहारिक नहीं है। पेगासस एक “जीरो-क्लिक” तकनीक है, जिसे सामान्य व्यक्ति पकड़ ही नहीं सकता। इससे निजता, प्रेस की आज़ादी और राजनीतिक अभिव्यक्ति पर सीधा हमला होता है। ऐसा ही दुरुपयोग पोलैंड और हंगरी जैसे देशों में भी हुआ है, जिसे यूरोपीय संसद की PEGA कमेटी ने उजागर किया था।
2017 के पुट्टास्वामी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने निजता को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार माना था। लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर कोर्ट का झुकाव इस अधिकार को कमजोर कर सकता है।
एसडीपीआई मांग करती है कि रवींद्रन कमेटी की रिपोर्ट का संशोधित (सेंसर किया गया) रूप सार्वजनिक किया जाए और इस मामले की जांच और सख्ती से की जाए। कोर्ट ने 2021 में जो वादा किया था, कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता की रक्षा करेगा, उसे अब ठोस कदमों में बदलने का वक्त आ गया है।
2024 में अमेरिका की एक अदालत ने एनएसओ ग्रुप के खिलाफ फैसला सुनाया था, जिससे पेगासस के गलत इस्तेमाल को लेकर अंतरराष्ट्रीय चिंता और पुख्ता हो गई है। भारत में भी पारदर्शिता और जवाबदेही को सुनिश्चित करना बेहद ज़रूरी हो गया है।
मोहम्मद शफी
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष
सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया

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