गरीबों की बचत बंद खातों में फंसी हुई है

सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया हिंदुस्तान के गरीब और वंचित तबकों के साथ खड़ी है और प्रधानमंत्री जन धन योजना की पूरी विफलता को उजागर करती है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में निष्क्रिय खातों का अनुपात सितंबर 2025 तक बढ़कर छब्बीस प्रतिशत हो गया है, जो पिछले वर्ष इक्कीस प्रतिशत था। इसका अर्थ है कि चौवन करोड़ पचपन लाख जन धन खातों में से लगभग चौदह करोड़ अट्ठाईस लाख खाते निष्क्रिय पड़े हैं, जिनमें गरीब जनता की बारह हजार सात सौ उनहत्तर करोड़ रुपये की बचत फंसी हुई है। यह तेज़ वृद्धि केवल एक आँकड़ा नहीं है, बल्कि ग्यारह वर्षों के अधूरे वादों और झूठे दावों के बाद एक राष्ट्रीय विश्वासघात है।

वर्ष 2014 में वित्तीय समावेशन के बड़े दावों के साथ शुरू की गई यह योजना अब एक राजनीतिक दिखावा बन चुकी है। सरकार ने स्वयं अप्रैल 2025 में एक करोड़ पचास लाख डुप्लीकेट और शून्य बैलेंस खातों को बंद करने की बात स्वीकार की, जिससे व्यवस्था में गहराई तक फैले भ्रष्टाचार का पर्दाफाश होता है। इससे पहले नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने यह बताया था कि शुरुआती चरण में खोले गए बीस से तीस प्रतिशत खाते फर्जी थे, जिन्हें सफलता का झूठा दावा करने के लिए जल्दबाजी में खोला गया था। महिलाएं, जो कुल जन धन खातों का लगभग छप्पन प्रतिशत रखती हैं, सबसे अधिक ठगी गई हैं। इन खातों में लगभग सत्तर प्रतिशत निष्क्रिय हैं, और बिहार तथा मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में ग्रामीण महिलाओं के खातों की निष्क्रियता दर अस्सी प्रतिशत से भी अधिक है, जैसा कि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के आंकड़ों से पता चलता है। यह तथाकथित महिला सशक्तिकरण नहीं बल्कि दिखावटी प्रतीकवाद है, जिसने हमारी लाखों बहनों को वास्तविक प्रगति के दायरे से बाहर रखा है।

इस योजना की आर्थिक असफलता भी उतनी ही स्पष्ट है। केवल इक्कीस प्रतिशत खाते बचत के लिए उपयोग हो रहे हैं, सात दशमलव आठ प्रतिशत डिजिटल भुगतान के लिए, और मात्र नौ प्रतिशत ऋण के लिए। औसत बैलेंस चार हजार सात सौ अड़सठ रुपये है, जो वादा किए गए दस हजार रुपये से भी कम है। विश्व बैंक ने हिंदुस्तान की चालीस प्रतिशत निष्क्रिय खाता दर को दुनिया में सबसे अधिक बताया है। यह साफ दर्शाता है कि रोजगार के बिना पहुंच का कोई अर्थ नहीं है, खासकर उस देश में जहाँ पैंतालीस करोड़ युवा बेरोजगार हैं। इससे भी बुरा यह है कि लगभग पंद्रह प्रतिशत खातों का दुरुपयोग साइबर ठगी में हुआ है, जिससे पिछले वर्ष एक हजार करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ। वृद्ध नागरिक, मुसलमान, दलित और अन्य वंचित अल्पसंख्यक इस सरकारी लापरवाही के कारण सबसे अधिक शिकार बने हैं।

टूटे वादों की सूची अंतहीन है। लगभग इकतीस प्रतिशत रूपे कार्ड अब तक जारी नहीं हुए हैं। ओवरड्राफ्ट की सुविधा केवल दो प्रतिशत उपयोगकर्ताओं तक पहुंची है। बीमा दावे आधे प्रतिशत से भी कम मामलों में निपटाए गए हैं। यह वित्तीय समावेशन नहीं बल्कि वित्तीय बहिष्करण है, जिसे भ्रामक आंकड़ों से सजाया गया है। गरीबों का उपयोग सरकारी आँकड़ों की शोभा बढ़ाने के लिए किया जा रहा है, उनके जीवन में सुधार लाने के लिए नहीं।

सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया तत्काल सुधारात्मक कदमों की मांग करती है। हम भारतीय रिज़र्व बैंक से सभी निष्क्रिय जन धन खातों का पूर्ण ऑडिट करने, बारह हजार सात सौ उनहत्तर करोड़ रुपये की पूरी राशि को नब्बे दिनों के भीतर वास्तविक खाताधारकों को लौटाने, धोखाधड़ी में लिप्त बैंकों पर सख्त कार्रवाई करने, ग्रामीण और गरीब नागरिकों के लिए अनिवार्य डिजिटल साक्षरता अभियान चलाने, और रोजगार से जुड़े वित्तीय कार्यक्रमों को लागू करने की मांग करते हैं ताकि वास्तविक आर्थिक न्याय सुनिश्चित हो सके।

मोहम्मद शफी
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष