एसडीपीआई, सुप्रीम कोर्ट से जस्टिस यादव के आचरण की इन-हाउस जांच बहाल करने की मांग करती है

सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बी.एम. कांबले ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव द्वारा विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के एक कार्यक्रम में 8 दिसंबर 2024 को दिए गए विवादित बयान पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा शुरू की गई जांच को अचानक रोक दिए जाने पर गहरी नाराज़गी जताई है। उन्होंने कहा कि राज्यसभा सचिवालय का इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है।

एसडीपीआई का कहना है कि जस्टिस यादव के बयान मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भड़काऊ और पक्षपातपूर्ण थे, जो संविधान के अनुच्छेद 14 में दिए गए समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय के मूल सिद्धांतों का सीधा उल्लंघन करते हैं। एक वर्तमान न्यायाधीश द्वारा ऐसे बयान न केवल सामाजिक विभाजन को बढ़ावा देते हैं, बल्कि न्यायपालिका की निष्पक्षता पर भी गंभीर सवाल खड़े करते हैं।

एसडीपीआई ने यह भी कहा कि विएचपी, जो बीजेपी और आरएसएस की विचारधारा से जुड़ी हुई है, उसके मंच पर दिए गए ऐसे बयान यह शक पैदा करते हैं कि राज्यसभा सचिवालय का ‘विशेषाधिकार’ का दावा कहीं जस्टिस यादव को बचाने की कोशिश तो नहीं है।

पार्टी ने यह भी ज़ोर दिया कि सुप्रीम कोर्ट की ‘इन-हाउस’ जांच प्रणाली एक ऐसा जरूरी माध्यम है, जिसके ज़रिए बिना महाभियोग जैसी जटिल संसदीय प्रक्रिया के भी न्यायिक जवाबदेही तय की जा सकती है। मार्च 2025 में राज्यसभा सचिवालय द्वारा जांच को रोकने का निर्णय न केवल असंवैधानिक है, बल्कि यह न्यायपालिका की स्वायत्तता को भी नुकसान पहुंचाता है।

एसडीपीआई ने यह भी चिंता जताई कि न तो जस्टिस यादव ने अब तक अपने बयान के लिए माफी मांगी है और न ही सचिवालय ने अपनी भूमिका को लेकर पारदर्शिता दिखाई है। ऐसे में यह साफ़ है कि जिम्मेदारी से बचने की कोशिश हो रही है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए घातक है।

चूंकि संसद में एनडीए का बहुमत है, इसलिए महाभियोग की प्रक्रिया व्यावहारिक रूप से असफल हो सकती है। इससे ऐसे मामलों में जवाबदेही का रास्ता बंद होता दिख रहा है।

एसडीपीआई मांग करती है कि, राज्यसभा सचिवालय तुरंत इस मामले में अपने हस्तक्षेप पर पारदर्शिता बरते और सार्वजनिक रूप से सफाई दे। सुप्रीम कोर्ट न्यायमूर्ति यादव के आचरण की निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच दोबारा शुरू करे। संवैधानिक संस्थाएं न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और देश की धर्मनिरपेक्ष पहचान की रक्षा के लिए मिलकर काम करें। सत्तारूढ़ एनडीए अपनी संसदीय ताकत का गलत इस्तेमाल कर ऐसे विवादास्पद और असंवैधानिक बयानों को संरक्षण देना बंद करे और न्यायपालिका में जनता के भरोसे को बहाल करने की दिशा में ठोस कदम उठाए।