नई दिल्ली/ सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आॅफ ने इंडिया पटियाला हाउस कोर्ट परिसर में संघियों द्वारा जेएनयू के छात्रों, अध्यापकों, मीडियाकर्मियों और जनता पर किया गया हमले की निंदा करती है। इसमें महिलओं को भी निशाना बनाया गया तथा क़ानून को ताक पर रखकर आतंक फैलाने के लिए, प्रजातांत्रिक प्रतिरोध को ताकत के ज़रिय सबक सिखाने का पुराना हथकंडा अपनाया गया है। गौरतलब है कि संघ ने शारिरिक, सशस्त्र व मानसिक प्रशिक्षण देकर देश में एक ऐसी अघौषित सेना खड़ी कर दी है, जो विरोध की आवाज़ को बर्दाश्त नहीं करती है तथा उसे दबाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। इसमें दुखद पक्ष यह है कि पुलिस तथा प्रशासन उपयुक्त कार्यवाही करने में असफल रहते हैं जिससे इन अराजक तत्वों के हौसले बुलंद पाए जाते हैं।
एसडीपीआई के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एडवोकेट शरफुद्दीन अहमद ने कहा कि पटियाला हाउस की घटना पहली नहीं है इससे पहले देश के अदालती परिसरों में पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों की उपस्थिति में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं तथा उनके पक्ष में खड़े वकीलों व अल्पसंख्यक वर्ग के आरोपियों पर हमले होते रहे हैं तथा झूठे आरोपों में बंद किए गए लोगों को बाद में अदालतों द्वारा रिहा कर दिया जाता रहा, परन्तु कभी भी अदालती परिसरों में किए गए हमलों के विरूद्ध कोई ठोस क़ानूनी कार्यवाही नहीं हो सकी। 6 दिसंबर 1992 को भी पुलिस अयोध्या में मूक दर्शक बनी रही तथा पत्रकार पिटते रहे। ऐसी कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं जिसकी कड़ी में पटियाला हाउस परिसर की घटना बेहद खतरनाक है तथा पुलिस अधिकारियों का रूख लीपा पोती वाला सामने आया है।
उन्होंने ने कहा कि एसडीपीआई यह समझती है कि हैदराबाद विश्वविद्यालय से लेकर जेएनयू तक घटनाएं एक बृहद योजना का हिस्सा है। जिसके द्वारा देश को यह संदेश देना है कि प्रजातांत्रिक व्यवस्था असफल हो गई है और हिटलर के अनुयायी देश में तानाशाही स्थापित करने के लिए मानसिकता पैदा कर रहे हैं। जिसमें सबसे पहले प्रजातांत्रिक विरोध करने वाले लोगों पर तथा मीडिया को डराकर देश में एक स्वर को स्थापित करना पहला कदम है। आज इस बात की आवश्यकता है कि भारत की संवैधानिक व्यवस्था तथाा प्रजातांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखने वालो तमाम लोग संघी चुनौती का सामना करने के लिए एकजुटता बनाए और भारत के लोकतंत्र को बचाने के लिए आगे आएं।