सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बीएम कांबले ने उत्तर प्रदेश के झांसी ज़िले के बछेड़ा गांव में हुई शर्मनाक घटना की कड़े शब्दों में निंदा की है। यहां एक महिला पुलिस कांस्टेबल के अंतरजातीय विवाह पर जाति आधारित पंचायत ने उसके परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर दिया और ₹20 लाख का जुर्माना लगाया। सबसे चिंताजनक बात यह है कि महिला कांस्टेबल की शिकायत के बावजूद यूपी पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया, जो हमारे संविधानिक मूल्यों की गंभीर अवहेलना है।

इस तरह का सामाजिक बहिष्कार, बुनियादी सुविधाओं से वंचित करना और धमकियाँ देना संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 17 और 21 का सीधा उल्लंघन है। इतना ही नहीं, जो भी इस परिवार का साथ देगा, उस पर ₹50,000 का जुर्माना लगाया गया है — यह सब एक सामंती मानसिकता को दर्शाता है जो लोकतांत्रिक भावना को कुचल देती है। इस तरह के फैसले न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं और उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था की खोखली हकीकत को उजागर करते हैं।

पुलिस की निष्क्रियता इस बात का संकेत है कि जातीय स्वार्थ कानून से ऊपर हो गए हैं — यह वही प्रवृत्ति है जो हाथरस कांड और अतीक अहमद की हिरासत में हुई हत्या जैसे मामलों में देखने को मिली थी। यह अत्यंत निंदनीय है कि एक पुलिस कांस्टेबल के परिवार को वही राज्य सुरक्षा नहीं दे पा रहा, जिसकी सेवा वह खुद कर रही है।

वर्ष 2022 में उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जातियों के खिलाफ अत्याचार के 12,287 मामले दर्ज हुए थे, लेकिन बछेड़ा की यह घटना दिखाती है कि जब कोई पिछड़ा वर्ग भी जाति व्यवस्था को चुनौती देता है, तो उसे भी निशाना बनाया जाता है।

एसडीपीआई मांग करती है कि इस मामले में तत्काल एफआईआर दर्ज की जाए और भारतीय दंड संहिता व एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत कार्रवाई हो। साथ ही, महाराष्ट्र की तरह सामाजिक बहिष्कार विरोधी कानून उत्तर प्रदेश में भी लागू किया जाए, पुलिस के लिए जाति-भेदभाव के खिलाफ प्रशिक्षण अनिवार्य किया जाए, एफआईआर दर्ज करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के ललिता कुमारी निर्णय को सख्ती से लागू किया जाए, और ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें बनाई जाएँ।

यह केवल एक परिवार का नहीं, बल्कि पूरे संविधान और न्याय प्रणाली की प्रतिष्ठा का सवाल है।