
मध्य पूर्व की शांति पर मंडराता इसराइली ख़तरा — अब आवश्यक है एक स्वतंत्र फ़िलस्तीन
इसराइल और ईरान के बीच हाल ही में समाप्त हुए 12 दिवसीय संघर्ष, जो अब एक युद्धविराम पर समाप्त हुआ है, मध्य पूर्व के इतिहास में एक निर्णायक क्षण है। यह संघर्ष विराम जान-माल के और अधिक नुकसान को रोकने की दिशा में एक अहम क़दम है। हम क़तर के कूटनीतिक प्रयासों की सराहना करते हैं और इसराइल तथा उसके सहयोगियों से अपील करते हैं कि वे इस युद्धविराम का सम्मान करें और स्थायी शांति की दिशा में गंभीर प्रयास करें।
हालांकि युद्धविराम लागू हो गया है, फिर भी इसराइल मध्य पूर्व की शांति और स्थिरता के लिए एक सतत खतरा बना हुआ है। इसराइल की आक्रामक नीति और पूरे क्षेत्र को अस्थिर करने वाली कार्यवाहियाँ बार-बार क्षेत्रीय अखंडता को नुकसान पहुंचाती रही हैं।
इस हालिया संघर्ष की शुरुआत इसराइल द्वारा ईरान के नागरिक क्षेत्रों, परमाणु स्थलों और मिसाइल ठिकानों पर किए गए पूर्व-निर्धारित हमलों से हुई। इसने इसराइल की सैन्य श्रेष्ठता के लंबे समय से चले आ रहे दावे की कमज़ोरियाँ उजागर कर दी हैं। दशकों से इसराइल ने 1948 और 1967 के निर्णायक युद्धों तथा सीरिया, लेबनान और फिलस्तीन में लगातार सैन्य अभियानों के ज़रिए क्षेत्र में बिना चुनौती के दबदबा बनाए रखा है। इन कार्रवाइयों ने बार-बार अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन किया है, पड़ोसी देशों की संप्रभुता को रौंदा है, और आम नागरिकों के मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन किया है। इन अपराधों—अवैध सैन्य घुसपैठ और नागरिक आबादी पर संगठित दमन सहित—के लिए इसराइल को ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए और उसे सज़ा मिलनी चाहिए। इसके अलावा, इसराइल के पास मौजूद परमाणु हथियार वैश्विक स्थिरता के लिए गंभीर खतरा हैं, जिन्हें पूरी तरह समाप्त करना अनिवार्य है ताकि मध्य पूर्व में टिकाऊ शांति सुनिश्चित हो सके।
इस युद्ध ने इसराइल की अजेयता के दावे को भी चुनौती दी है। ईरान के मिसाइल प्रतिउत्तरों ने यह दिखा दिया कि इसराइल पूरी तरह से अछूता नहीं है। अत्याधुनिक रक्षा प्रणालियों और जवाबी हमलों के बावजूद, इसराइल को इस संघर्ष में भारी क्षति उठानी पड़ी है। समुद्र और ज़मीन के रास्तों से नागरिकों के देश छोड़ने की खबरें एक ऐसे राष्ट्र की वास्तविकता दर्शाती हैं जो अब त्वरित जीतों का अभ्यस्त नहीं रहा। इसराइल के अजेय होने की मिथक अब टूट चुकी है। ईरान की मज़बूती, और अमेरिका जैसे वैश्विक शक्तियों की भूमिका, यह दर्शाती है कि केवल सैन्य ताक़त से इस क्षेत्रीय संकट का समाधान नहीं किया जा सकता। ईरान ने अत्याचार के विरुद्ध डटे रहने और एक ऐतिहासिक सबक सिखाने की मिसाल पेश की है।
फिर भी, इस युद्धविराम को अंत नहीं, बल्कि उस ऐतिहासिक संकट के समाधान का एक अवसर माना जाना चाहिए जिसका केंद्र फिलस्तीन है। दशकों से फिलस्तीनी जनता ज़ुल्म, ज़बरदस्ती विस्थापन और व्यवस्थित हिंसा का शिकार हो रही है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अब तुरंत दो-राष्ट्र सिद्धांत को लागू करने की दिशा में कार्य करना चाहिए और एक न्यायसंगत व स्थायी समाधान सुनिश्चित करना चाहिए—जिसमें 1967 पूर्व की सीमाओं के आधार पर, पूर्वी यरूशलम को राजधानी बनाकर एक स्वतंत्र फिलस्तीनी राष्ट्र की स्थापना हो।
इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इसराइल को आक्रामक नीतियों—जैसे अवैध बस्तियों का विस्तार, सैन्य घुसपैठ और सीरिया व लेबनान जैसे पड़ोसी देशों पर हवाई हमलों—को तुरंत रोकना होगा। उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य सीमाओं तक पीछे हटना होगा और ग़ाज़ा तथा वेस्ट बैंक में ज़ुल्म और दमन के जो ढांचे बनाए गए हैं, उन्हें खत्म करना होगा।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अब निर्णायक कदम उठाने चाहिए—आक्रमणकारियों को जवाबदेह ठहराना, अंतरराष्ट्रीय कानूनों को सख्ती से लागू करना और सार्थक बातचीत को समर्थन देना—ताकि इस लंबे चले आ रहे संघर्ष का निष्पक्ष और स्थायी समाधान संभव हो सके।
एडवोकेट शरफ़ुद्दीन अहमद
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष
सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया
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