
बिहार की मतदाता सूची में ‘विदेशी नागरिकों’ के दावे: एक राजनीतिक चाल
सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मोहम्मद शफी ने बिहार की मतदाता सूची में नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के “बड़ी संख्या में विदेशी नागरिकों” की पहचान के चुनाव आयोग के निराधार और अपारदर्शी दावे की कड़े शब्दों में निंदा की है। विशेष सघन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया के दौरान किया गया यह दावा न केवल लोकतंत्र पर सीधा प्रहार है, बल्कि 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सीमांचल क्षेत्र के वंचित समुदायों—विशेष रूप से मुस्लिमों और बांग्लाभाषी नागरिकों—को मताधिकार से वंचित करने की सोची-समझी साजिश प्रतीत होता है।
चुनाव आयोग का यह बयान किसी भी ठोस आंकड़े या प्रमाण पर आधारित नहीं है, जिससे उसकी विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं। जनवरी 2025 में ही व्यापक मतदाता सूची पुनरीक्षण पूरा होने के बावजूद आयोग ने जून में अचानक एक और एसआईआर की शुरुआत की, जिसमें महज एक महीने में 7.9 करोड़ मतदाताओं को लक्षित किया गया। यह प्रक्रिया न केवल बेहद जल्दबाज़ी में की गई, बल्कि सीमांचल जैसे क्षेत्रों पर असमान रूप से केंद्रित रही—जहां मुस्लिम आबादी 47% है—जो स्पष्ट रूप से अवैध प्रवास के नाम पर एनडीए की विभाजनकारी राजनीति की पुनरावृत्ति करता है और विपक्षी वोटों को दबाने का प्रयास प्रतीत होता है। साथ ही, नागरिकता सत्यापन जैसे विषय, जो संविधान के तहत गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आता है, उसमें चुनाव आयोग का हस्तक्षेप अनुच्छेद 324 के तहत उसकी निष्पक्ष भूमिका की भावना का उल्लंघन करता है।
शुरुआत में एसआईआर प्रक्रिया ने आधार और मतदाता पहचान पत्र जैसे सामान्यतः स्वीकृत दस्तावेज़ों को अमान्य ठहराया—जिसे बाद में केवल सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद बदला गया। इस फैसले ने बिहार के सबसे वंचित वर्गों—प्रवासी मजदूरों, निम्न जातियों और गरीबों—पर अन्यायपूर्ण बोझ डाल दिया है, जिनमें से कई के पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं हैं। यह प्रक्रिया बड़े पैमाने पर मतदाता अधिकार से वंचित करने का जोखिम पैदा करती है, जो व्यवहारिक रूप से एनआरसी जैसी स्थिति बना रही है।
असम में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा द्वारा अक्टूबर 2025 में प्रस्तावित एनआरसी पूरी होने तक मतदाता सूची पुनरीक्षण स्थगित करने की मांग भी चिंता बढ़ाती है। 2019 में प्रकाशित एनआरसी के मसौदे में पहले ही 19 लाख लोगों को बाहर कर दिया गया था, जिनमें से 7 लाख मुस्लिम थे—यह सब कठोर दस्तावेज़ी शर्तों के कारण हुआ। राज्यों में उभरती यह प्रवृत्ति यह संकेत देती है कि अल्पसंख्यकों को लोकतांत्रिक व्यवस्था से हाशिये पर धकेलने का एक समन्वित प्रयास किया जा रहा है, जिसे “चुनाव की शुचिता” के नाम पर जायज़ ठहराने की कोशिश हो रही है।
चुनाव आयोग की कार्रवाइयाँ सीमांचल की जनता को “विदेशी” बताकर कलंकित कर रही हैं और लोकतांत्रिक संस्थाओं में जनता के विश्वास को कमजोर कर रही हैं। एसडीपीआई मांग करती है कि एसआईआर को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाए, विदेशी नागरिकों के दावों से संबंधित सभी साक्ष्यों को सार्वजनिक किया जाए, दस्तावेज़ प्रक्रिया को सरल बनाया जाए और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र निगरानी प्रणाली लागू की जाए।
हम बिहार और असम के वंचित समुदायों के साथ मजबूती से खड़े हैं। उनके मताधिकार पर इस संगठित हमले को किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। चुनाव आयोग को अपने संवैधानिक कर्तव्य का पालन करते हुए लोकतंत्र की रक्षा करनी चाहिए—ना कि वह किसी राजनीतिक दल का औजार बने।
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