नये श्रम संहिता सुधार नहीं, कॉरपोरेट को दिया गया उपहार हैं

सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया केन्द्र सरकार द्वारा 21 नवम्बर 2025 को चार नयी श्रम संहिताओं को लागू किये जाने की कड़ी निन्दा करती है और इसे देश के करोड़ों श्रमिकों के अधिकारों पर सीधा हमला मानती है। सुधार के नाम पर उठाया गया यह कदम दरअसल कॉरपोरेट जगत को दिया गया उपहार है, जो वर्षों में हासिल किये गये श्रम सुरक्षा उपायों को समाप्त करता है और शोषण को और गहरा बनाता है। राष्ट्रीय महासचिव के रूप में मैं उन मेहनतकश लोगों की ओर से बोल रहा हूँ जिनकी आवाज़ को इस अलोकतांत्रिक प्रक्रिया में जानबूझकर अनदेखा किया गया।

पहला, इस लागू करने की प्रक्रिया ने लोकतांत्रिक मानकों के प्रति चौंकाने वाली उपेक्षा दिखाई है। वर्षों से चले आ रहे ट्रेड यूनियनों और मज़दूर संगठनों के आन्दोलन के बावजूद कोई सार्थक परामर्श नहीं हुआ। नियम अब भी अधूरे हैं और राज्य सरकारें अफरा-तफरी में उन्हें अधिसूचित करने की कोशिश कर रही हैं। यह जल्दबाज़ी मानव गरिमा से ऊपर कॉरपोरेट लॉबी की प्राथमिकताओं को रखती है और श्रम के प्रति औपनिवेशिक मानसिकता को दोहराती है।

दूसरा, ये संहिताएँ एक ऐसी व्यवस्था लागू करती हैं जिसमें कंपनियां मनमाने ढंग से नियुक्ति और निष्कासन कर सकती हैं, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में नौकरी की सुरक्षा बुरी तरह प्रभावित होगी। औद्योगिक सम्बन्ध संहिता में छंटनी की सीमा बढ़ाकर 300 श्रमिक कर देना बड़ी कंपनियों को सरकारी अनुमति के बिना कर्मचारियों को हटाने की छूट देता है। निश्चित अवधि के अनुबंध और ‘प्रो राटा’ लाभ अनिश्चित रोजगार को छिपाते हैं, जबकि 14 दिन की अनिवार्य हड़ताल सूचना श्रमिकों की सामूहिक सौदेबाजी की शक्ति को कमजोर करती है। यह स्थिति “जंगल राज” पैदा करेगी जिसमें श्रमिक बिना किसी सुरक्षा के इस्तेमाल होकर फेंक दिये जाने वाले पुर्जों की तरह काम करेंगे।

तीसरा, वेतन न्याय अभी भी एक क्रूर छलावा है। वेतन संहिता में राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन केवल 176 रुपये प्रतिदिन तय किया गया है, जो बढ़ती महँगाई से जूझते श्रमिकों की 400 रुपये प्रतिदिन की माँग से बहुत कम है। भविष्य निधि और ग्रेच्युटी की गणना के लिये व्यापक वेतन परिभाषा लागू होने से श्रमिकों का वास्तविक वेतन 10 से 15 प्रतिशत तक कम हो जायेगा क्योंकि नियोक्ता वेतन से राशि काटकर लम्बी अवधि की निधियों में डालेंगे। लैंगिक वेतन समानता के दावे लागू किये बिना खोखले हैं और उस भेदभाव को जारी रखते हैं जिसमें महिलाएँ पहले से ही 20 प्रतिशत कम कमाती हैं।

चौथा, सामाजिक सुरक्षा एक खोखला वादा बनी हुई है। सामाजिक सुरक्षा संहिता में गिग वर्करों को केवल 1 से 2 प्रतिशत के सीमित योगदान के माध्यम से शामिल दिखाया गया है, जबकि सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुरक्षा और 25 लाख रुपये के आवश्यक बीमा सुरक्षा जाल की अनदेखी की गयी है। मातृत्व लाभ और क्रेच सुविधाएँ कागज़ों पर तो प्रगतिशील लगती हैं, लेकिन अनुपालन लागत से जूझ रहे सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम आसानी से इनसे बच निकलेंगे। परिणामस्वरूप, देश के लगभग 90 प्रतिशत श्रमिकों को रोजगार देने वाला असंगठित क्षेत्र असुरक्षित ही बना रहेगा। आधार आधारित तथाकथित पोर्टेबल लाभ मजबूत प्रणालियों के बिना केवल एक तकनीकी भ्रम हैं।

अंत में, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य परिस्थितियाँ संहिता 12 घंटे की शिफ्ट और महिलाओं के लिये रात के कार्य को बिना मजबूत सुरक्षा उपायों के सामान्य बनाती है। वार्षिक स्वास्थ्य जांच और सुरक्षा समितियाँ केवल कागज़ों पर मौजूद हैं और वास्तविक प्रवर्तन के बिना भोपाल जैसी त्रासदियों का मार्ग प्रशस्त कर सकती हैं।

यह सुधार नहीं, बल्कि प्रतिगमन है, जिसे प्रधानमंत्री के कॉरपोरेट सहयोगियों को लाभ पहुँचाने के लिये बनाया गया है, जबकि 50 करोड़ श्रमिक इसका बोझ उठाते हैं। सोशियल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया इन मजदूर विरोधी संहिताओं को तत्काल वापस लेने, 400 रुपये का राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन तय करने, शहरी रोजगार गारंटी लागू करने और वास्तविक त्रिपक्षीय परामर्श शुरू करने की माँग करती है। हम देशव्यापी आंदोलनों में ट्रेड यूनियनों के साथ मजबूती से खड़े हैं।

मोहम्मद इलयास थुम्बे
राष्ट्रीय महासचिव
सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया