क्यों सीपीआई(एम) ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर अपने विरोध से समझौता किया

केरल में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार ने, जो सीपीआई(एम) के नेतृत्व में चल रही है, अपने सहयोगी दल सीपीआई के कड़े विरोध को नजरअंदाज करते हुए जिस गुप्त तरीके से केंद्र सरकार के साथ प्रधानमंत्री श्री योजना (पीएम श्री) लागू करने की शर्तों को स्वीकार करते हुए समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, वह एक सच्चाई को उजागर करता है कि भाजपा सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रति सीपीआई(एम) का विरोध केवल दिखावा था।

प्रधानमंत्री श्री योजना यानी प्रधानमंत्री के विद्यालय फॉर राइजिंग इंडिया को केंद्र सरकार ने एक राष्ट्रीय योजना के रूप में शुरू किया है, जिसका उद्देश्य है स्कूल प्रणाली को आधुनिक सुविधाओं के साथ गुणात्मक रूप से सशक्त बनाना और उन्हें राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आदर्श संस्थान के रूप में विकसित करना। इस नीति को सही रूप में आरएसएस के उस एजेंडे के खाके के रूप में वर्णित किया गया है, जिसका मकसद है हिंदू राष्ट्र की नींव रखने के लिए नई पीढ़ी के मस्तिष्क पर कब्जा करना।

प्रधानमंत्री श्री योजना के दस्तावेजों में स्पष्ट कहा गया है कि इसका उद्देश्य एनईपी के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए देश के प्रत्येक हिस्से में मॉडल संस्थान विकसित करना है। जो राज्य इस परियोजना पर हस्ताक्षर करने से इंकार करेंगे, उन्हें केंद्र की सर्व शिक्षा अभियान योजना के अंतर्गत मिलने वाली निधि से वंचित कर दिया जाएगा। चूंकि केरल ने 2022-23 में इस योजना की शुरुआत से ही इसे स्वीकार करने से इंकार कर दिया था, इसलिए केंद्र सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान के तहत 1500 करोड़ रुपये की राशि जारी करने से मना कर दिया, जैसा कि राज्य सरकार के अधिकारियों ने बताया।

केंद्र सरकार उन निधियों को रोकने के हथियार का इस्तेमाल कर रही है जिन्हें संघीय व्यवस्था के अनुसार नियमित रूप से राज्यों को मिलना चाहिए। कई गैर भाजपा शासित राज्यों ने इस बात की शिकायत की है कि केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा अवैध वित्तीय दबाव डाला जा रहा है। यह देश में केंद्र और राज्य के संबंधों के लिए गंभीर परिणाम वाला मामला है। शिक्षा ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी केंद्र सरकार की ऐसी एकतरफा कार्रवाई ने राज्यों को भारी मुश्किलों में डाल दिया है, जहां केंद्र की सहायता राज्य योजनाओं के संचालन के लिए अत्यंत आवश्यक है।

लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में यह मामला और भी गंभीर है। किसी भी राज्य के विकास के लिए शिक्षा में पर्याप्त निवेश तत्काल आवश्यक है। इसे टाला नहीं जा सकता, क्योंकि हर पीढ़ी को ठीक ढंग से शिक्षित करना जरूरी है। इस क्षेत्र में किसी भी लापरवाही का मतलब होगा हमारे नागरिकों की एक खोई हुई पीढ़ी।

भाजपा और उसकी सरकार ऐसे दबावपूर्ण तरीकों का इस्तेमाल इसलिए कर रही है क्योंकि वे जानते हैं कि देश उनकी दक्षिणपंथी शिक्षा नीति एनईपी 2020 को स्वीकार नहीं करेगा। इस नीति का उद्देश्य है नई पीढ़ी के मस्तिष्क में एक पतनशील, अवैज्ञानिक और तर्कहीन विचारधारा का संचार करना। उनकी इतिहास और समाज की अवधारणाएं उस हिंदुस्तान की विचारधारा के विपरीत हैं जहां हर समुदाय और सामाजिक वर्ग को समान, गरिमापूर्ण और वैध स्थान प्राप्त हो। लेकिन आरएसएस ऐसी समावेशी हिंदुस्तान की अवधारणा को अस्वीकार करता है और इसके बजाय एक सांप्रदायिक, बहिष्कारी दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है, जिसमें बहुसंख्यक समुदाय का वर्चस्व होगा और अन्य सभी को द्वितीयक दर्जा स्वीकार करना पड़ेगा, अगर उन्हें अस्तित्व में रहने दिया गया तो।

इसी कारण के चलते केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने केंद्र की प्रधानमंत्री श्री योजना और एनईपी थोपने की कोशिशों का विरोध किया था। तमिलनाडु ने सर्वोच्च न्यायालय में जाकर केंद्र से अपनी वैध निधि जारी करवाने में सफलता प्राप्त की। केरल भी ऐसा कर सकता था, लेकिन इसके बजाय सीपीआई(एम) के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और सामान्य शिक्षा मंत्री वी सिवनकुट्टी ने केंद्र की शर्तें स्वीकार कर केंद्र के साथ गुप्त रूप से समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। न तो सहयोगी दलों को विश्वास में लिया गया और न ही नागरिक समाज में किसी सार्वजनिक चर्चा की गुंजाइश छोड़ी गई।

यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है जिसका केरल की जनता को बिना किसी समझौते के विरोध करना चाहिए। दांव पर है राज्य का भविष्य, एक ऐसा राज्य जो अब तक सांप्रदायिक शांति और सामाजिक सद्भाव का प्रतीक रहा है, जबकि हिंदुस्तान के कई हिस्सों में ऐसी स्थिति नहीं है। अगर केरल अपनी साम्प्रदायिक एकता और सहयोग की परंपराओं को अपनी नई शिक्षा नीतियों के जरिए कमजोर कर देता है, तो यह उसके लोगों के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है।

पी अब्दुल मजीद फैज़ी
राष्ट्रीय महासचिव