ग़ाज़ा पर साम्राज्यवादी कब्ज़ा, जनता के लिए कोई जगह नहीं

व्हाइट हाउस में अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की मुलाक़ात के बाद तैयार किया गया ग़ाज़ा शांति प्रस्ताव दरअसल ग़ाज़ा की जनता पर बंदूक की नोक पर उनके साम्राज्यवादी इरादों को थोपने की एक निंदनीय चाल है। ट्रम्प ने खुद को ग़ाज़ा के भविष्य के पुनर्निर्माण का मुखिया घोषित किया है और ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर को इस क्षेत्र में अपना स्थायी एजेंट नियुक्त किया है। नेतन्याहू ने इन प्रस्तावों को इसलिए सहजता से स्वीकार कर लिया क्योंकि यह उसे और उसकी अति-दक्षिणपंथी सरकार को बीते दो वर्षों में की गई तबाही और विनाश की जिम्मेदारी से मुक्त कर देता है।

ट्रम्प ने हमास, जिसने ग़ाज़ा में एक निर्वाचित प्रशासन चलाया है, को अंतिम चेतावनी दी है कि या तो वे इन प्रस्तावों को स्वीकार करें, वरना ग़ाज़ा की जनता पर एक और भयानक बमबारी और पूर्ण विनाश के लिए तैयार रहें। उनके निशाने पर नरसंहार है ताकि फ़िलिस्तीनियों की मातृभूमि को खाली करवा कर उसे अपने खेल के मैदान में बदला जा सके।

यह एक बेहद निंदनीय परियोजना है, जिसके लिए ट्रम्प को उम्मीद है कि उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिलेगा! यह हंसी का विषय होता अगर फ़िलिस्तीनी जनता पर इन दोनों नेताओं द्वारा ढाए गए भयावह मानवीय कष्ट न होते। ट्रम्प ने अतीत में नेतन्याहू के हर घृणित कदम का समर्थन किया है और वे आज भी विश्व जनमत की परवाह किए बिना ऐसा करते जा रहे हैं।

हमास की आधिकारिक प्रतिक्रिया अभी सामने नहीं आई है, लेकिन विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, उनके इस प्रस्ताव को स्वीकार करने की संभावना बहुत कम है। इन प्रस्तावों में ग़ाज़ा की जनता को कुछ भी नहीं दिया गया है, सिवाय एक अस्थायी युद्धविराम के, जिसे नेतन्याहू अपनी सुविधा के अनुसार कभी भी तोड़ सकते हैं। बीते दो वर्षों से नेतन्याहू ग़ाज़ा की जनता पर युद्ध जारी रखे हुए हैं, बावजूद इसके कि पूरी दुनिया और यहां तक कि इस्राइल के भीतर भी बड़े पैमाने पर आंदोलन हो रहे हैं जो नरसंहारक युद्ध को रोकने की मांग कर रहे हैं।

इसलिए यह सोचना अवास्तविक नहीं है कि हमलावरों और उनके सहयोगियों द्वारा रखे गए इन प्रस्तावों से कोई भलाई सामने आएगी। इन चर्चाओं में न तो हमास से और न ही महमूद अब्बास की अगुवाई वाले फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण से कोई सलाह-मशविरा किया गया। यहां तक कि क़तर, जिसने युद्धविराम वार्ताओं में मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी, उसे इनाम स्वरूप अपने ही क्षेत्र पर इस्राइली मिसाइल हमलों का सामना करना पड़ा।

ट्रम्प ने ग़ाज़ा के भविष्य के लिए अपनी मंशा साफ़ कर दी है— ग़ाज़ा की जनता को वहां से खदेड़ना और इसे पश्चिमी अमीरों के लिए एक पर्यटन स्थल में बदलना। यही काम साम्राज्यवादी ताक़तों ने एशिया, अफ्रीका और अन्य जगहों पर अतीत में किया है और उपनिवेशोत्तर काल में भी वे ऐसे ही सपने देखते रहते हैं। यह दर्शाता है कि साम्राज्यवाद कभी नहीं बदला है और शायद कभी बदलेगा भी नहीं। दुनिया की जनता को अपनी ज़मीन, ज़िंदगी और गरिमा बचाने के लिए इनका सामना करना ही होगा।

दिलचस्प है कि ट्रम्प को टोनी ब्लेयर में एक सहयोगी मिला है— वही ब्लेयर, जो दो दशक पहले इराक़ पर हमले और उसके विनाश का एक मुख्य योजनाकार था। उसने यह मिथक फैलाया कि सद्दाम हुसैन के पास सामूहिक विनाश के हथियार हैं, जो पूरी दुनिया की सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं, और इसी बहाने इराक़ पर हमला किया गया। युद्ध के बाद दुनिया ने देखा कि ऐसा कोई हथियार नहीं मिला। लेकिन तब तक महान देश इराक़ को पूरी तरह तबाह किया जा चुका था, उसकी अपार संपदा और सांस्कृतिक धरोहर लूट ली गई थी और उसके नेता सद्दाम हुसैन को एक दिखावटी मुकदमे के बाद मार दिया गया था। ऐसे में आश्चर्य नहीं कि ट्रम्प ने ग़ाज़ा में अपने सहयोगी के रूप में ब्लेयर को चुना, क्योंकि उसका इराक़ का पुराना रिकॉर्ड उनके काम आता है।

यास्मीन फ़ारूकी
राष्ट्रीय महासचिव