भारतीय समाज धर्म आधारित वर्गों में विभाजित होकर अनगिनत समाजिक इकाईयों में बंटा हुआ है तथा इन्होंने राजनैतिक समूहों का रूप ले लिया है। इसी तरह भारत में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक केवल जन्म के आधार पर तय होते हैं, विचार या तत्कालीन मुद्दे बहुत मायने नहीं रखते। जातिगत और सांप्रदायिक शिनाख्त और हित इतने बड़े हो गए हैं कि वे देशहित पर भारी पड़ रहे हैं। देश की सामाजिक व्यवस्था जाति व संप्रदाय को मूल इकाई के तौर पर और व्यक्ति को अपवाद के तौर पर स्वीकार करती है लेकिन भारत का संविधान व्यक्ति को मूल इकाई के तौर पर और वर्ग तथा जात को अपवाद के तौर पर मानता है। देश की समाजिक व्यवस्था और संवैधानिक प्रावधानों में तालमेल नहीं बैठ पा रहा है और दोनों में टकराव बढ़ता जा रहा है। निहित समाजिक और राजनैतिक स्वार्थों ने समाजिक संरचना को वर्गीय घृणा बढ़ाने में इस्तेमाल करके देश को मज़बूत धर्मनिरपेक्ष व लोकतांत्रिक स्वरूप देने के रास्ते में बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।

आज़ादी की लड़ाई में अपना सबकुछ न्यौछावर करने वाले लोगों में गांधी जी, डा. आंबेडकर और मौलाना आज़ाद आदि के नेतृत्व में, राजनैतिक व्यवस्था में हर व्यक्ति को बराबरी, स्वतंत्रता व सम्मान को सर्वोपरी क़रार दिया और समाजिक कटुता व ग़ैरबराबरी को खत्म करते हुए भारत को कल्याणकारी राज्य बनाने का सपना संजोया। शासन तथा प्रशासन को धार्मिक पक्षपात से दूर रखने के लिए संवैधानिक व प्रजातांजिक स्वरूप प्रदान किया। बहुवादी समाज और विभिन्नताओं को आदर देते हुए संसदीय प्रणाली व संघीय ढांचे को अपनाया ताकि देश एक रह सके और हर वर्ग का योगदान देश की उन्नति और खुशहाली के लिए सुनिश्चित किया जा सके।

आज़ादी की लड़ाई से खुद को दूर रखकर फ़ासीवादी तत्वों ने अपनी ताकत बाद में अल्पसंख्यकों को कुचलने के उद्देश्य से खुलेतौर पर बचाये रखी। आज़ादी के बाद तिरंगे झंडे को मनहूस क़रार दिया और संविधान की धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था को सिरे से ख़ारिज कर दिया। गांधी जी की हत्या करवा दी। संप्रदायिक दंगों के ज़रिय अल्पसंख्यकों की अर्थव्यवस्था व सांझा संस्कृति को अपूर्तिनीय आघात पहुंचाया। धर्म परिवर्तन, मुसलमानों की बढ़ती आबादी, पर्सनल लाॅ, गौहत्या, राष्ट्रवाद और तुष्टीकरण के मुद्दों पर झूठी दलीलें देकर समाजिक सौहार्द व सद्भाव को कमज़ोर करने का सिलसिला शुरू किया। दहशत फैलाने के लिए कभी नीली नरसंहार, स्वर्ण मंदिर, कंधमाल, बाबरी मस्जिद, गोधरा गुजरात नस्लकुशी, मुज़फ़्फ़रनगर हमलों का प्रायोजन तथा कभी लव जिहाद, घर वापसी, और गौरक्षा के नाम पर मूल भूत व क़ानूनी अधिकारों को तार-तार करके रख दिया और इस तरह देश में धर्मनिरपेक्षता को कमज़ोर करने की मुहिम जारी रखकर दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों, मुसलमानों, ईसाईयों व सिखों को अयोग्य, नक्सलवादी, आतंकवादी या उग्रवादी नाम देकर व असम्मानित करके देशद्रोही बताया। हिंदी, हिन्दू, हिन्दूस्तान की बुनियाद पर संविधानपरे राष्ट्रवाद की व्याख्या करके अन्य सभी वर्गों की देशभक्ति के लिए जनमानस में शक की मानसिकता पैदा कर दी।

घृणा व दुश्मनी को हवा देकर, विकास के बहाने पूंजिपतियों के सहारे संघी सत्ता पर कब्ज़ा करने में कामयाब हो गए तथा अब वे शिक्षा के ढांचे में नई शिक्षा नीति के द्वारा मूलचूल परिवर्तन करना चाहते हैं इसके लिए एक ओर सूर्य नमस्कार तथा गीता पाठन को अनिवार्य कर रहे हैं तो दूसरी ओर उच्च शिक्षा को चलाने के लिए अपने अयोग्य परंतु प्रतिबद्ध प्रचारकों को उच्च पदों पर बिठा रहे हैं तांकि भगवाकरण के कार्यक्रम में वह शिक्षा को हथियार के रूप में प्रयोग कर सकें। संविधान को पूरी तरह से परिवर्तित करने के एजेंडे के तहत संवैधानिक मर्यादाओं तथा मान्यताओं को क्षीण रहे हैं। हरियाणा विधानसभा में नग्न साधू का संबोधन इसकी ताज़ा मिसाल है।

जनता को उनके प्रजातांत्रिक अधिकारों से वंचित रखने के लिए उनमें गरीबी, रूढ़िवादिता, क्षेत्रवाद, संकीर्णता, बिरादरीवाद व सांप्रदायिक्ता को बढ़ावा देते हुए भारत को हिन्दुराष्ट्र के खोखले मंसूबे में शामिल कर रहे हैं ताकि देश में धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था कमज़ोर हो जाए और मुटठीभर लोग समाज में असीमित बटवारें की बुनियाद पर सत्ता व व्यवस्था पर काबिज़ बने रहें। घटनाएं इस रूप में प्रायोजित की जा रही हैं कि जनता का मन-मस्तिष्क उन्हीं में उलझा रहे और देश में पूंजिवाद व जातिवाद का गठबंधन लाभांवित होता रहे। असहमति को देश से बगावत का नाम दिया जा रहा है। धर्म व जाति के आधार पर व्यवसायों में बांधा उत्पन्न की जा रही है। पूरे देश में मौलिक तथा क़ानूनी अधिकारों का हनन हो रहा है तथा झूठे मुकदमों की बुनियाद पर डर का माहौल पैदा किया जा रहा है। सुधारवादियों को एक के बाद एक क़त्ल किया जा रहा है। दहशत फैलाने के लिए दलितों व अल्पसंख्यकों के क़त्ल व बलात्कार किए जा रहे हैं तथा गौरक्षा के नाम पर भगवा अपराधियों को सरकारी संरक्षण प्राप्त हो गया है। क़ानून का डर खत्म हो जाने की ताज़ा मिसालें उना तथा मेवात की घटनाएं हैं। धर्म के आधार पर नागरिकता का क़ानून बदला जा रहा है तथा विदेशी पूंजिपतियों को भारत की राजनैतिक पार्टियों को चलाने के लिए फंडिंग का अधिकार दिया जा रहा है। खाने, घूमने व बोलने की आज़ादी पर हमले किए जा रहे हैं। क़ानून से ऊपर निजी भगवा सेनाएं बनाकर तुरत कार्यवाही करके हत्याएं की जा रही हैं। हवालातों और जेलों में क़त्ल किए जा रहे हैं। धर्म के आधार पर आवास व नौकरियों से अलग रखा जा रहा है और दलितों के मानसिक स्तर पर सवाल उठाए जा रहे हैं। शक व घृणा का वातावरण इस तरह से बढ़ गया है कि व्यवस्था दोहरे मापदंड पर चल रही है। क्रसमस तथा ईद तक की छुटिटयों पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं और धार्मिक स्वतंत्रता पूरी तरह से ख़तरे में आ गई है। इंसाफ का साथ देने वाले व्यक्तियों के खि़लाफ़ भी झूठे मुकदमें किए जा रहे हैं जिसके तीसता सीतलवाड़, ज़ाकिर नायक तथा एम्नेस्टी इंटरनेशलन हालिया उदाहरण हैं।

हमारी धर्मनिरपेक्ष मान्यताएं तथा जीवन शैली इस समय सबसे बड़े ख़तरे में हैं जिसके लिए सभी नागरिकों तथा संगठनों को तुरंत एक साथ खड़े होकर अपनी विरासत को बचाने की जिम्मेदारी है क्योंकि सेक्युलरवाद के खत्म होते ही देश में प्रजातंत्र नहीं बचेगा और फ़ासीवादी व्यवस्था थोप दी जाएगी। इसलिए सभी कमज़ोर, साधनविहीन, दलितों, आदिवासिया,ें अल्पसंख्यकों तथा धर्मनिरपेक्ष व्यक्तियों को धर्मनिरपेक्षता को बचाने के लिए बिना समय गवाएं आंदोलित होने की ज़रूरत है क्योंके प्रजातंत्र के लिए सेक्युलरइज़्म अपरिहार्य है।